Gurukul is a living embodiment of vedic principles and Indian culture. It is a center fit for academic pursuits and harmonious development of the individual. It is spread over 10-acre tract of level land in the lap of uncontaminated natural lush green surroundings and far from the city crowds. Situated in silent, serene and dust-free solitudes.
It is very important to have a perfect calm and peaceful environment for students for studies. Principal Chanderkla believes that this environment has a major role to play for our students in achieving success in studies, sports and in character building. It also motivates the students to achieve their defined goals
Discreetly synthesizing ancient ideals with recent advancements, this Institute of higher learning is guided by the Gurukul system elaborated by Maharshi Dayanand Saraswati and is making rapid strides towards the goals set before it.
\विद्यार्थियों का ध्यान अध्ययन पर ही केन्द्रित रखने के लिए प्राचीन काल में भारत में एक विशेष परम्परा रही और वह थी- विद्या अर्जन करने वालों की दिनचर्या व उनके निवासस्थान का गृहस्थियों से अलग प्रकार का होना। इसके लिए विद्यार्थी का अध्ययन काल में गुरुकुल में रहना अति अनिवार्य था. फिर चाहे वह झोपड़ी में रहने वाले साधारण परिवार के बालक बालिकाएं हों या महलों के राजकुमार। सभी को शिक्षाप्राप्ति गुरुकुल में जाकर करनी होती थी. जहां सुबह से शाम तक उन्हें एक ऎसी दिनचर्या का पालन करना होता था जो उन्हें तपपूर्वक शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक तीनों क्षेत्रों में सशक्त बनाए. इसी दिनचर्या में बंधे हुए वे विद्याभ्यास करते थे. इस प्रकार से उन विद्यार्थियों को दो अनिवार्य अभ्यासों का अनुपालन करना होता था- एक व्रताभ्यास और दूसरा विद्याभ्यास। जिसमें व्रताभ्यास के अन्तर्गत विनय, शील, संस्कार एवं धर्माचरण के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता था, जबकि विद्याभ्यास को हम आज की स्कूली शिक्षा व्यवस्था की तरह ही समझ सकते हैं, जिसमें विषयगत अध्ययन पर ध्यान केंद्रित होता है और महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि व्रत और विद्या दोनों ही क्षेत्रों में विद्यार्थियों का उत्तीर्ण होना आवश्यक था. किसी एक में अपेक्षिता परिणाम न दे पाने पर विद्यार्थी को फिर से वही शिक्षा दी जाती थी. जिससे पास आउट होने विद्यार्थी अच्छे इन्सान और अच्छे विषयविशेषज्ञ बनकर समाज और राष्ट्र के लिए हितकारी होते थे, जो अपनी शैक्षणिक अभियोग्यताओं से तो देश के काम आते ही थे, साथ ही वे अच्छे नागरिक भी थे. अपनी उच्छृंखलताओं से प्रशासन के लिए चिंता का विषय नहीं बनते थे. अर्वाचीन गुरुकुल परम्परा में भी इसी आदर्श को दोहराने की कोशिश की जाती है. दिनचर्या का एक निर्धारित क्रम इन गुणों के विकास में सहयोग प्रदान करता है-
4.00-4.15 जागरण व ईशप्रार्थना-मंत्रपाठ
4.15-4.45 शौच-दंतधावन आदि
4.45-545 व्यायाम, प्राणायाम, ध्यान
5.45-6.15 स्नान
6.15-7.00 संध्योपासना-अग्निहोत्र
7.00-7.15 कक्षादि-शोधन
7.15-7.45 प्रातराश
7.45-8.00 विद्यालय-प्रार्थना
8.00-1.30 विद्यालय (पठन-पाठन)
1.30-2.00 भोजन
2.00-3.00 विश्राम, वस्त्रप्रक्षालन आदि
3.00-5.00 कक्षा-पाठस्मरण
5.00-6.00 क्रीड़ा, शोधन व श्रमदान
6.00-6.45 संध्योपासना-अग्निहोत्र
6.45-7.15 भोजन
7.15-8.00 भ्रमण व दुग्धपान
8.00-9.30 कक्षा-पाठस्मरण
9.30 ईश-प्रार्थना, रात्रिशयन
9.30 ईश-प्रार्थना, रात्रिशयन
9.30 ईश-प्रार्थना, रात्रिशयन
यह नियमित दिनचर्या बच्चों में अनुशासन का भाव पैदा करती है. उन्हें विनम्र बनाती है तथा समूह का हिस्सा बनाना सिखाती है. बच्चों में स्वावलम्बन की अत्यन्त आवश्यक भावना का विकास करने के लिए गुरुकुल का यह विशेष नियम है कि बच्चे अपने निजी कार्य जैसे- वस्त्रप्रक्षालन, पात्रशोधन एवं परिसर शोधन का कार्य स्वयं करें। इससे वे न सिर्फ स्वावलम्बी एवं व्यावहारिक बनेंगे, बल्कि अपने किए परिश्रम की कीमत भी पहचानेंगे. इससे वे दूसरे की मेहनत का भी सम्मान करना सीखेंगे. उनमें राष्ट्रीय संसाधनों के प्रति किफायत का भाव पैदा होगा और वे स्वछताप्रिय बनेंगे. इसके अतिरिक्त भी अनेक अंतर्विद्यालयीय गतिविधियों का आयोजन किया जाता है. इसमें संगीत, भाषण, कविता-लेखन, निबंध-लेखन,खेलकूद आदि से जुडी गतिविधियाँ शामिल हैं. प्रति रविवार कक्षा-अध्यापिका द्वारा अपनी-अपनी कक्षा का साप्ताहिक विवरण देखा जाता है. उनके अध्ययन और आचरण की प्रगति का जायजा लिया जाता है. बच्चों की आपसी समस्याओं एवं व्यवस्थागता असुविधाओं का निराकरण किया जाता है. वैसे यह कार्य पूरे सप्ताह भी चलता रहता है। गुरुकुल गुरु का कुल है. यह एक परिवार है अत: परिवार के सदस्य की तरह ही जिस समय समस्या हो, बच्चे अपने अध्यापकों के पास जाकर समाधान सकते हैं परन्तु रविवार को इसका आयोजन विशेष रूप से किया जाता है ताकि अगर किसी बच्चे में शिथिलता आ जाए तो उसे प्रेरित किया जा सके. जरूरत पड़ने पर अभिभावकों को भी इस विवरण से अवगत कराया जाता है. इस प्रकार नगर-ग्राम की भीड-भाड़ से दूर गुरुकुल के विशेष परिवेश में बच्चे विद्या और व्रत का अभ्यास करते रहते हैं, जिससे उनमें एकाग्रता का विशेष रूप से विकास होता है और अल्प समय में अधिक प्रगति कर पाते हैं. यही वजह है कि अपने निश्चित विद्यालयीय पाठ्यक्रम के साथ-साथ विद्यार्थी वेद, उपनिषद् ,दर्शन, गीता, पाणिनीय अष्टाध्यायी, नीतिशतक, वैराग्यशतक, चाणक्यनीति, विदुरनीति आदि अनेक प्राचीन ग्रंथों को कंठस्थ भी करते हैं और उनका गम्भीर अध्ययन भी करते हैं. इससे उनके व्यक्तित्व में आधुनिक के साथ-साथ प्राचीन विद्या का भी एक महत्वपूर्ण आयाम जुड़ जाता है. जीवन भर साथ रहने वाली यह उपलब्धि उन्हें बाक़ी विद्यार्थियों से अलग बनाती है. उन्हें अपनी संस्कृति और सभ्यता का ठोस ज्ञान मिल जाता है. जिससे यहां से पढ़कर जाने के बाद अपने-अपने कार्यक्षेत्र में उनकी उत्तम छवि बन जाती है. ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता और अनुशासनपूर्वक अपने कार्य को करते हुए वे देश के अच्छे नागरिक बनते हैं और ये एक बड़ी उपलब्धि है.
1. The syllabus of the Gurukul is a full time study and is completely a residential programme.
2. Students should have interest and motivation to learn the syllabus of the Gurukul.
3. The parents/guardian need to accompany the student to the Gurukul for admission. In the case parents / guardian are unable to accompany the student; they need to make alternate arrangement.
4. The student should be in good health. Student should not have any long term chronic disease.
5. Going out of the Gurukul (boundary) is strictly prohibited for the Student.
6. During the Studies the student is not permitted to go home.
7. During the stay and study in the Gurukul, students are not allowed to study or write any other outside examination.
8. With prior notice and confirmation, parents/guardian may visit the Gurukul to meet student. Parents can also talk to the student on a prescribed phone number as per rules.
9. Student is not allowed to talk to parents/guests/visitors without permission.
10. The student must follow religiously the time table and schedule of the Gurukul.
11. Students are not allowed to keep phone, laptop, tablet, hard disk, pen drive, cash or any valuable items.
12. During the period of stay at Gurukul students need to wear the uniform prescribed by the Gurukul.
13. In case the student is found to violate any of the Rules and Regulations of the Gurukul, the Pradhanacharya may take appropriate disciplinary action. The student will be held responsible for any violation of the Rules and Regulations of the Gurukul.
14. The rules and regulations are subject to change as per requirement of the Gurukul management.
15. If anybody founded creating indiscipline of any kind can be restricted from gurukul in mid session.
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