जीन्द रियासत के पिछड़ापन क्षेत्र बाढड़़ा के गांव पंचगांव में चौ० अमीलाल के घर जन्म लेकर अपने त्याग से प्रदेश में अपने गांव का नाम रोशन कर दिया। बालक का नाम मनसाराम रखा गया जिसने प्रदेश की जनता के सामने अपनी सारी ७० बीघे जमीन प्रदेश की लड़कियों के नाम दान कर
अभूतपूर्व उदाहरण रखा। पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण यहां उस समय शिक्षा प्राप्ति का कोई साधन नहीं था, इसलिए आप अशिक्षित ही रहे। बाद में कुछ पढऩा-लिखना सीख लिया। आपका बचपन हम उम्र बच्चों के साथ खेलने में बीता। कुछ बड़ा होने पर गाएं चराने और खेती के कार्य में पिता का हाथ बटाने लगे।
उस समय स्वतन्त्रता
आन्दोलन भी जोर पकड़ चुका था। आप गांवों में घूम-घूमकर लोगों को इस आन्दोलन से जोड़ते और लड़कियों को शिक्षित करने के लिए कहते। मौजिज लोगों की कमेटी का गठन किया गया। पास के ही मा० माणिकचन्द बंधुओं की जमीन में मिट्टी थी वहीं ईंटें पथवाकर पकाई गई। सबसे पहले निकटवर्ती गांव माण्ढी हरिया के चौ० लायकराम ने कुआं खुदवाया। उनके देहांत के बाद
उनके पुत्र चौ० अमरसिंह ने उसे पक्का करवाया। गुरुकुल के भवन के लिए एक बड़ा छप्पर जिसके दोनों ओर दो छोटी कोठडिय़ों का निर्माण करवाया। गुरुकुल के चारों ओर चारदीवारी करवाई और उसके बाहर एक कमरा, एक भोजनालय का कमरा बनवाया और लड़कियों को शिक्षित करने का कार्य प्रारम्भ हुआ। शिक्षा का माध्यम हिन्दी और संस्कृत रहा। महर्षि दयानन्द की शिक्षा पद्धति का
अनुसरण किया, जो पाठ्यक्रम गुरुकुल झज्जर में था वही पाठ्यक्रम यहां भी लागू कर दिया। यह गुरुकुल 1947 में प्रारम्भ हो गया तथा सन् 1956 तक चलता रहा।
महाशय जी गुरुकुल का पूरा कार्यभार कार्यकारिणी को सौंपकर स्वयं आन्दोलन में कूद पड़े। आपका स्वर मधुर था। बाजे के साथ गाते थे। आपको सुनने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती थी। जब लोग आपसे पूछते कि
महाशय जी आजादी के बाद क्या होगा? तो आप जवाब देते कि 'अब तो राजा को रानी जन्म देती है, आजादी के बाद राजा ढोल/मतपेटी से पैदा होगा। थारे खेतां में छान्या (फूस की कच्ची झोंपडिय़ां) में और जाटियां में लट्टू (बिजली के बल्ब) चसैंगे।Ó चौ० बंसीलाल मुख्यमंत्री हरियाणा ने जब १९७२ में बाढड़़ा बिजली घर का उद्घाटन किया तब कहा था कि महाशय जी की भविष्यवाणी आज
सत्य सिद्ध हो गई है। उसके बाद भी अपने भाषणों में वे यह बात दोहराते रहते थे।
जब मैं रात को सड़क के मार्ग से जाते नलकूपों पर बिजली के बल्ब जलते देखता हूँ तो महाशय जी की बात याद आ जाती है। मानहेरू के मा० बनारसीदास गुप्त जो बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने वे भी शनिवार को आपके साथ आ मिलते थे और दो दिन प्रचार में साथ दे सोमवार को वापिस चले जाते।
१५ अगस्त सन्
१९४७ को देश अंग्रेजों से तो आजाद हो गया परन्तु देशी रियासतों के राजाओं का दमनचक्र तो चलता ही रहा। इससे तंग आकर आस-पास के इलाके के लोगों ने दादरी की कचहरी को घेर लिया और किला मैदान में भारी जनसमूह इकट्ठा हो गया। महाराजा जीन्द के विरोध में नारे लगाए और पंचगांव के ही चौ० महताबसिंह को राजा चुन लिया। रामकिशन गुप्ता को निजामत का जज और महाशय मनसाराम को बाढड़़ा थाना का
थानाध्यक्ष चुनकर समानान्तर सरकार का गठन किया। यह समानान्तर सरकार १७ दिन तक चली, उसके बाद महाराजा जींद के साथ समझौता हुआ और उनके मन्त्रिमण्डल में चार मंत्री किसान समुदाय से शामिल कर लिए गए।
सन् १९५६ में गुरुकुल बन्द होने पर महाशय जी गांव छोड़कर निकटवर्ती गांव धारणी की बणी में कुटिया बनाकर बिना दीक्षा लिए संन्यासी जैसा जीवन बिताने लगे। इस बीच आपने कुछ देशी औषधियों
का भी ज्ञान प्राप्त कर लिया और छोटी-छोटी बीमारियों का इलाज भी करने लगे। आपकी आत्मा को अब भी शान्ति नहीं मिल रही थी, आप यह देखकर दु:खी रहते थे कि जमीन भी दान दी और वहाँ गुरुकुल भी नहीं चला ऐसा दु:ख आप अपने मिलने वाले साथियों के साथ में प्रकट करते रहते थे।
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